Sunday, September 3, 2017

राहुल गांधी ,मोदी और कुत्ते का बिस्कुट

ये लेख लिखने की प्रेरणा मुझे एक राजनैतिक घटना और एक तस्वीर से मिली – तस्वीर को समझने के लिए , पहले घटना और उससे जुड़े राजनैतिक विश्लेषण को पढिये – अंत में तस्वीर देखोगे तो हसी जरुर आयेगी .
बात 2015 की है जब हेमन्त बिस्वा शर्मा राहुल गांधी से असम में विधानसभा चुनाव और नेतृत्व परिवर्तन के विषय पर मुलाकात करने गए थे , बताया ये जाता है कि इस राजनैतिक व्याख्यान और वार्ता के दौरान एक पालतू कुत्ता उनके सभा कक्ष में आता है और राहुल गांधी अपने पालतू कुत्ते को बिस्कुट खिलाने में ज्यादा व्यस्त हो जाते है औऱ उन्हें सिर्फ दो मिनट में हेमन्त बिस्वा शर्मा को अपना व्याख्यान पूरा करने को बोला जाता है ।।बताया ये भी जाता है इस मुलाकात के दौरान असम काँग्रेस के क्षेत्रीय नेताओं के बीच चल रहा राजनैतिक गृह युद्ध खुल कर सामने आ गया और आरोपों और प्रत्यारोपो का दौर शुरू हो गया । इन घटनाओ से और राहुल गांधी के अपरिपक्व व्यवहार से आहत होकर हेमन्त बिस्वा शर्मा असम कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए और असम में भाजपा की जीत के सूत्रधार बने.

परन्तु इन सभी विवादों को परे रख हमे थोड़ा सा इतिहास कुरेद लेना चाहिए और वो इतिहास आपको याद दिलाएगा की किस तरह भाजपा ने "लुइस बर्गर रिश्वत कांड" में तत्कालीन कांग्रेस नेता ओर तत्कालीन असम सरकार के स्वास्थ्य मंत्री हेमंत बिस्वा शर्मा पर भ्रष्टाचार के आरोपो की झड़ी लगा दी थी ।।भ्रष्टाचार से जुड़े इन सभी विवादों के बीच गोगई सरकार ने 7 अगस्त 2015 को सीआईडी जांच के आदेश दिये परन्तु "बिस्वा के भ्रष्टाचार” ने राष्ट्रवादी भगवा चोगा स्वीकार किया और इन सभी विवादों को "बाईं पास" करते हुए वो 23 अगस्त 2015 को "भ्रष्टाचारी बिस्वा" से "भाजपाई बिस्वा" हो गए और असम विधानसभा में भाजपाई विजय रथ के संचालक बने और सफल रहे.

परन्तु इतिहास शायद अपने आपको फिर से दोहरा रहा है ,"भाजपाई बिस्वा" के भगवा दामन पर पुराने दाग फिर से प्रकट हो रहे है , हेमंता बिस्वा शर्मा को हाई कोर्ट से झटका लगा है ."लुइस बर्गर रिश्वत कांड" में हाई कोर्ट ने सीबीआई जाँच के आदेश दिए हैं । येही नही जांच में ढिलाई बरतने के लिए सीआईडी को हाई कोर्ट ने फटकार भी लगाई है ।।याद रखियेगा की 7 अगस्त 2015 को तत्कालीन गोगोई सरकार ने दिए थे हेमंत बिस्वा शर्मा के खिलाफ़ सीआईडी जांच के आदेश औऱ 23 अगस्त 2015 को कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए थे हेमंत बिस्वा शर्मा .

अच्छा हुआ राहुल गांधी उस समय अपने पालतू कुत्ते को बिस्कुट खिलाने में व्यस्त हो गए , क्योंकि कांग्रेस के बहुत से क्षेत्रीय नेता "सत्ता का बिस्कुट" किसी भी परिस्थिति में हासिल करना चाहते हैं ,संवैधानिक पदों पर रहते हुए और पार्टी के पदों पर रहते हुए ये तथाकथित “शेत्रिय नेता” पार्टी और सरकार के संसाधनो का दरुपयोग तो करते ही हैं , भ्रष्टाचार के बीज बोकर अपनी जेब भरने के लिए खेती बाड़ी भी करते है और जब एहसास होता है की गाड़ी दल दल में फस चुकी है तो राहुल गाँधी को राजनैतिक रूप से “पप्पू “ घोषित करने की कहानियाँ गड़ते हैं और मौका मिलते है पार्टी के नेतृत्व पर कीचड़ उछाल , तड़ीपार का दामन थाम लेते हैं . 

अगर हेमंत बिसवा शर्मा की तथाकथित “कुत्ते के बिस्कुट “ वाली कहानी में इनती ही विश्वसनीयता है , तो राहुल गाँधी द्वारा घर वापसी के लिए भेजे गये निवेदन संदेश अर्थात SMS और उसके जवाब में भेजे गये संदेश (its too late ..) का कोई तो स्क्रीन शॉट या सबूत मीडिया में उजागर किया होता . आखिरकार हेमंत बिसवा शर्मा के स्वाभिमान पर चोट लगी थी , कहानी की विश्वसनीयता पर अगर सवाल खड़ा होगा तो कहीं बिसवा के स्वाभिमान की तुलना लोग नितीश कुमार अवसरवादी स्वाभिमान और अवसरवादी अंतरात्मा से ना करना शुरू कर दे . 

आश्चर्य की बात तो ये है की जो “तथाकथित आरोपित शेत्रिय नेता” कांग्रेस छोड़ भाजपा में जाते हैं ,ये “तथाकथित आरोपित शेत्रिय नेता” एक ऐसे राजनैतिक दल का दामन कैसे थाम लेते हो जो कुछ दिन पहले तक इनके उपर भ्रष्टाचार का आरोप लगा रहा थे , इनके खिलाफ जांच आयोग की मांग कर रहे थे पर जैसे ही ये “तथाकथित आरोपित शेत्रिय नेता” पाला बदलते है तो मानो वो सारे आरोप, वो सारी जाँच आयोग की मांगे और तथाकथित “मीडिया में हो रही इस विषय पर चर्चा “ भी ऐसे ही लापता हो जाती हैं जैसे “मिस्टर इंडिया” गायब होत था या मानो “भगवा राष्ट्रवाद की आड़ में उनका कोई नैतिक शुद्धिकरण “ हुआ हो. .
असम चुनावों से ठीक साल भर पहले तक हेमंत कुमार बिस्वा पर सारदा घोटाले और "लुइस बर्गर रिश्वत कांड" के आरोपों से घिर चुके थे .जरा याद कीजिये की किस तरह मीडिया ने ,खास तौर पर अर्नब गोस्वामी और सुधीर चौधरी जैसे तथाकथित राष्ट्रवादी पत्रकारों ने सारदा घोटाले और "लुइस बर्गर रिश्वत कांड" को मीडिया में उछाला था , पर जैसे ही “भ्रष्टाचारी बिसवा “ “भाजपाई बिसवा” हो गये तो तथा कथित राष्ट्रवादी मीडिया हेमंत कुमार बिसवा पर लगे सभी आरोपों वैसे ही भूल गया जैसे सर पर लगी चोट से यादाश्त चली जाती है.

कुछ इतनी ही दिलचस्प बहुगुणा परिवार की अवसरवादी राजनीती की कहानी है ,जो राहुल गाँधी को अपरिपक्व अर्थात पप्पू बोलने से शुरू हुई थी . जहाँ तक बात रही बहुगुणा परिवार की तो विजय बहुगुणा पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप अब भाजपा को नही दिखाई देते क्यूंकि उत्तराखंड और उत्तप्रदेश में उनका पूरा परिवार भाजपा में अपना विलय कर चुका है और “विजय” रथ पर सवार है . जरा याद कीजिये वो दिन जब भाजपा ने बहुगुणा परिवार पर भ्रष्टाचार के आरोपों की बौछार कर दी थी और आज वो ही बहुगुणा परिवार उत्तराखंड की भाजपा इकाई में गृहयुद्ध की परिस्तिथियाँ पैदा कर रहे हैं .उत्तराखंड में टकराव भाजपाइयों और कांग्रेस की प्रष्टभूमि से आये भाजपाइयों में हो बढ़ता जा रहा है और भीतरघात की भी बू आ रही है। जरा सोचिये अब राष्ट्रवादी मीडिया को विजय बहुगुणा के शासन काल के दौरान लगे भ्रष्टाचार के आरोप नही दिखाई देते और ना ही इस राष्ट्रवादी मीडिया को ये दिखाई दे रहा है की किस तरह विजय बहुगुणा उत्तराखंड भाजपा में गुटबाजी फैला कर “बगावत “ के बीज बो रहे है , ऐसी हरकते वो कांग्रेस में थे जब भी करते थे और अब भाजपा में भी अपने विघटनकारी व्यवहार से भाजपा को तोड़ने में लगे है.

निश्चित तौर पर इस कांग्रेस युक्त भाजपा में आस्तीन के साँप बहुत हैं जो कांग्रेस की प्रष्टभूमि से पधारे हैं . किसमत की धनी है कांग्रेस की ऐसे अवसरवादी आस्तीन के सांप , राहुल गाँधी की अपरिपक्व राजननीति अर्थार्त पप्पू राजनीती के चलते भाजपा में चले गये . इस अपरिपक्व राजनीति का परिणाम सिर्फ चुनावी हार है , तो ये हार हमे स्वीकार है ,क्यूंकि येही चुनावी हार उन समर्पित कांग्रेस कार्यकर्ताओं को जनता के बीच अपनी विचारधारा को फिर से स्थापति करने का मौका फिर से देगी जो गाँधी , नेहरु , पटेल और बोस के अथक प्रयासों से स्थापित हुई थी . समय लगेगा, सुदृढ़ इच्छा शक्ति की आवश्यकता है परन्तु आस्तीन के साँप से युक्त विजय रथ पर कभी सवार ना हो .ना रथ बचेगा ,ना सवार . 

2016 में हुए असम विधानसभा चुनावो पर अगर हम नजर डाले तो कुछ दिलचस्प तथ्य सामने आते हैं जो कांग्रेस के लिए लाभकारी साबित हो सकते हैं और इस तथ्य को भी साबित करते हैं की हेमंत बिसवा शर्मा जैसे आस्तीन के साँप भी हमारी बढ़त नही रोक सकते,अगर हम संगठित हो कर चले और एक अच्छा चुनावी प्रबन्धन करे तो आंकड़े भी इसी बात की तरफ इशारा करते हैं की हम सत्ता में फिर से वापसी कर सकते हैं और भाजपा का विजय रथ रोक सकते हैं .
सन 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को असम में मिले थे कुल 55,07,152 वोट,जो कुल पड़े वोटो का 36.9 प्रतिशत था. वहीँ 2016 के विधानसभा चुनाव में भाजपा का मिले थे कुल 49,92,185 वोट जो कुल पड़े वोटो का 29.8 प्रतिशत थे , यानी की तकरीबन 5 लाख 15 हज़ार वोटो का नुकसान सन 2014 के लोकसभा चुनावो के बाद भाजपा को हुआ .

वहीँ कांग्रेस की बात करे तो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को असम में मिले 44,67,295 वोट,जो की कुल पड़े वोटो का 29.9 प्रतिशत था और वहीँ 2016 के विधानसभा चुनाव में मिले 52,38,655 वोट,जो कुल पड़े वोटो का 31 प्रतिशत था यानी की 7 लाख 71 हज़ार से भी अधिक वोटो का लाभ कांग्रेस को हुआ सन 2014 के लोकसभा चुनावों के नुकसान के बाद .

भाजपा असम में अपने दम पर नही जीती है, जीत सिर्फ अन्य सहयोगी दलों के सहयोग से मिली है जिनका वोट प्रतिशत कुल पड़े वोट का 12 प्रतिशत रहा . जिसकी बदौलत भाजपा असम में सत्ता का सूरज देख पाई . अगर इसी प्रकार का गठबंधन कांग्रेस अगर All India United Democratic Front (AIUDF) के साथ (जिसका वोट प्रतिशत 13 प्रतिशत रहा) असम में कर लेती तो शायद आज असम राज्य में सत्ता में कांग्रेस होती , परन्तु AIUDF एक इस्लामिक दक्षिणपंथी राजनैतिक सन्गठन है , जिसकी समाजिक सम्बन्ध कट्टरपंथी और धार्मिक इलामिक संगठनो के साथ काफी गहरे हैं और विवादास्प्क भी हैं और ऐसे किसी भी दल के साथ किसी भी प्रकार राजनैतिक गठबंधन पार्टी की मूलभूत विचारधारा के खिलाफ होता और पार्टी की छवि पर नकरात्मक असर भी डालता है. हालाँकि पाला बदलने में महारत हासिल कर चुके नितीश कुमार इस तरह के “ध्रुवीकृत महा-गठबंधन” का सुझाव भी दे चुके थे. शायद एक अवसरवादी ही ऐसे अवसरवादी गठबंधन का सुझाव दे सकता है ,जिसके चलते राज्य का समाजिक ताना बाना बिगाड़ने में भाजपा को देरी नही लगती .

इन सभी तथ्यों का निचोड़ येही है की अगर संगठित हो कर चलें और “एकला चालो रे “ की नीति पर भी चला जाये तो असम में कांग्रेस फिर से सत्ता में स्थापित हो सकती है , पर राज्य में कांग्रेस के नेत्तृत्व को लेकर अब हमे गम्भीर होना होगा क्यूंकि तरुण गोगोई के बाद कांग्रेस का असम में नेतृत्व कौन करेगा ये एक सवाल जिसका जवाब हमे जल्द ही ढूंढना होगा .

बरहाल असम का चुनावी परिणाम कैसा भी रहा हो ,“आस्तीन का साँप “ अति घातक भी होता है, अति महत्वकांशी भी होता है और अति अवसरवादी भी ,अगर किसी पालतू कुत्ते के बिस्कुट खाने भर से दुखी हो कर ऐसे “आस्तीन का साँप” पार्टी छोड़ कर जा सकते हैं तो ऐसी अपरिपक्व राजनीती को सलाम जो आस्तीन के साँप को बाहर का रस्ता दिखा सके . मुबारक हो भाजपा तुम्हे ये आस्तीन के साँप , गलती से भी ऐसे अवसरवादियों पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के जांच मत करवा देना क्यूंकि जो दाग कांग्रेस के दामन पर लगे थे वो कहीं मोदी जी के दामन पर स्थानांतरित ना हो जाये.

अंत में इस लेख के साथ जुड़ी ये फोटो भी देखिएगा जिसमे एक “आस्तीन का साँप ” एक पालतू कुत्ते का रूप धारण करके मोदी जी की बिस्कुट वाली प्लेट से बिस्कुट लेने की तैयारी में है, पर मोदी जी को कुत्ते के पिल्लों की मौत पर दुःख होता है ये भी याद रखियेगा .
आप से निवेदन रहेगा की कृपया इस दृश्य को हेमंत बिसवा शर्मा , बहुगुणा परिवार और नितीश कुमार के राजनैतिक चरित्र से जोड़ कर ना देखे . ये कहीं कोई इनके दुर्लभ राजनैतिक चरित्र के लिए राहुल गाँधी को दोषी ना करार दे दे .
और कहीं ऐसे सवाल पूछ कर आपका भी कहीं ”पप्पू“ की श्रेंणी में नामांकन ना हो जाये .
धन्यवाद ..

Tuesday, May 9, 2017

लेख - आपकी दक्षिणपंथी सामूहिक चेतना भी सबसे बड़ी बलात्कारी है ।


प्रिय पाठक , 
पिछले कुछ दिनों से "सामूहिक चेतना " नामक शब्द मीडिया में काफी उपयोग में लाया जा रहा है । तो सोचा की आज बात की जाएगी भारतीय सामूहिक चेतना के बारे जो भगवा रंग में डूब चुकी है या इस भारतीय सामूहिक चेतना को भी "मोदीयाबिंद" या "संघाईटीस" हो चुका है और आश्चर्य की बात ये है कि कुछ लोग इसे राष्ट्रवाद और हिंदुत्व का नाम देते हैं । दक्षिणपंथी गैंग के लोग सबसे ज़्यादा माहिर है आपकी "सामूहिक चेतना " जगाने और बुझाने में और आपको पता भी नही चलेगा की आपकी सामूहिक चेतना इन दाक्षिणपंथियों के शासन में कितनी "चयनात्मक" और "दोगली" हो चुकी है ।बिलकिस बानो और निर्भया केस में जिस तरीके से हमारी सामूहिक चेतना को जलाया और बुझाया गया वो हमारे चयनात्मक और दोगली सामूहिक चेतना का सबसे बड़ा उदहारण है  ।
ज़रा सोचिए की हमारे देश मे एक महिला के साथ आठ लोग उसके पति के सामने बलात्कार कर देते है और हमारी सामूहिक चेतना आहत ही नही होती ।क्या हमारी सामूहिक चेतना , जाती धर्म या किस राज्य में किस राजनैतिक दल का शासन है ये सारे तथ्यों को मद्देनजर रखने के बाद ही आहत होती है ? क्या हमारी सामूहिक चेतना इसलिए आहत नही हो रही कि अब यूपी में "यादव युग" की जगह "क्षत्रिय योगी" युग आ चुका है और सिर्फ दो ही महीने हुए हैं इस क्षत्रिय युग को आये हुए इसलिए जब तक पुराने युग के सामाजिक कुप्रभाव खत्म नही हो जाते (जिसकी कोई समय सीमा निर्धारित नही है) तब तक चुप रहे या फिर "तब कहाँ थे" वाला जुमला ठोक कर प्रश्न पूछने वाले को परास्त कर,उसे देश द्रोही घोषित कर सामूहिक चेतना के साथ ही बलात्कार कर दे ।
आपकी "सामूहिक चेतना" जातिगत और धार्मिक पृष्टभूमि के आधार पर ही भड़कती है और साथ ही साथ आपकी सामूहिक चेतना इस विषय का भी ध्यान रखती है की सत्ता में किस दल की सरकार है , अगर राष्ट्रवादी सरकार की है तो आपकी सामूहिक चेतना स्वयं का ही गला घोट देगी या फिर "जातिगत" आधार पर भड़केगी जैसे हरियाणा में भड़की थी औऱ उत्तरप्रदेश में "जातीगत" आधार पर अभी सुलग रही है ।
ज़रा सोचिये आपकी सामूहिक चेतना "कश्मीर" में हुए बलात्कारों पर कैसे भड़कती है और "उत्तरपूर्वी" राज्यों में हुए बलात्कारों को कैसे नज़रअंदाज़ करती है । ज़रा सोचिए आपकी सामूहिक चेतना देश मे दलित महिलाओं के साथ हुए तमाम बलात्कारों की घटनाओं को किस तरीके के से कुचल देती है अब चाहे वो फूलन देवी हो,चाहे वो भंवरी देवी हो और चाहे छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों द्वारा आदिवासी महिलाओं के साथ हुए बलात्कार हो। आपकी सामूहिक चेतना इन सभी मामलों में बलात्कारियों के समर्थन में मौनव्रत धारण करके खड़ी होती है।
क्या बिलकिस बनो के संधर्भ में भी आपकी सामूहिक चेतना "गोधरा" कांड की आड़ लेकर ,इस सामूहिक बलात्कार को जायज़ ठहराती है , मतलब आपकी दक्षिणपंथी सामूहिक चेतना "धर्म" के आधार पर बलात्कारियों की चेतना भी बन जाती है ।कारगिल से लेकर गोधरा और हरियाणा से लेकर कश्मीर तक "खुफिया तंत्र" द्वारा उपलब्ध कराई गई खुफिया सूचनाओं को ये दक्षिणपंथी साम्राज्य अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए "नज़रअंदाज़" करता रहता है और हमारी सामूहिक चेतना भी इस "नज़रअंदाज़ कर देने वाले कृत्य" पर भी कोई सवाल नही खड़ा कर पाती है । एक दक्षिणपंथी और फासीवादी साम्राज्य किसी भी "समाजिक -राजनैतिक घटनाक्रम" का "नैतिक मापदंड और एजेंडा' स्वयं निर्धारित करता है और स्वयं को उस "समाजिक -राजनैतिक घटनाक्रम" के केंद्र बिंदु में रख कर अपनी राजनैतिक विचारधारा के लिए एक "प्रचुरोद्भवन वातावरण" का  निर्माण मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से करवाता है।
ज़रा सोचिए आपकी तथाकथित "सामूहिक चेतना" पदमावती के काल्पनिक दृश्य " पर तो भड़क जाती है परंतु दूसरी तरफ "फूलन देवी" के हत्यारे को "हिन्दू हृदय" सम्राट भी घोषित कर देती है आपकी तथकथित सामूहिक चेतना , किस तरह बिहार में रणवीर सेना की "सामूहिक चेतना" को गौरवान्वित रूप ले लेती है जो जातिगत मानवधिकार हनन की सबसे बड़ी घटना मे से एक है । घोड़े पर दलित बैठता है, हाथी पर दलित बैठता है , फूल से सजी गाड़ी में दलित बैठता है तो नजाने उनका सामाजिक तौर पर बहिष्कार करने की "सामूहिक चेतना" कहाँ से जाग उठती है । ऐसी सामूहिक चेतना सिर्फ जाती और धर्म देखकर ही भड़कती है और वो भी "राष्ट्रवाद" का चोगा पहनकर।
खैर जम्मू के किसी पुलिस थाने में किसी महिला के साथ पुलिस वालों ने वो ही हरकत की है जो निर्भया केस में उस नाबालिक ने की थी ।देखते है सामूहिक चेतना कितनी भड़कती है क्योंकि कहा ये भी जा रहा है कि इस केस को को रफा दफा करने के लिए राज्य सरकार का एक वर्ग काफी दबाव बना रहा है ।
बड़ा ताज़्ज़ुब होता है कि राष्ट्रवादियों की सामूहिक चेतना अचानक से गायब हो जाती है जब कोई "भक्त" प्रधानमंत्री की विचारधारा की आड़ में बलात्कार की धमकी देता है और ट्रोल करता है , बड़ा ताज़्ज़ुब होता है कि हमारी सामूहिक चेतना उस समय भस्म हो जाती है जब प्रधानमंत्री के नाम से चल रहे राष्ट्रवादी संघटनो के मुखिया उत्तरपूर्व राज्य की महिलाओं से साथ संदिग्ध अवस्था मे पकड़े जाते है और बड़ा ताज़्ज़ुब होता है जब मुरथल हाईवे पर बड़े सामूहिक स्तर पर महिलाओं के साथ ब्लात्कार होते हैं और मीडिया के और समाज की सामूहिक चेतना कुछ दिनों बाद गायब दिखती है । कोई "इस्लामिक" एंगल नही है तो हो सकता है मुरथल सामूहिक रेप कांड में हमारी दक्षिणपंथी सामूहिक चेतना खड़ी नही हो पा रही हो । परन्तु ये मीडिया आधारित दक्षिणपंथी सामूहिक चेतना बैंगलोर में हुई सामूहिक छेड़छाड़ की घटनाओं पर बहुत उफान मारती है जो सीसीटीवी कैमरे की फुटेज के आधार पर झूठ और गलत साबित होती है ,काश बैंगलोर में राष्ट्रवादी सरकार होती तो तथ्यहीन खबरों को चलाने की ज़रूरत नही पड़ती ।क्या बैंगलोर वाली घटना क्या वास्तव में एक "बड़ी सामूहिक छेड़छाड़" की घटना थी । शायद नही क्यूंकि सोशल मीडिया में गुडगाँव में किसी "ऍम जी रोड " पर कुछ साल पहले हुई छेड़छाड़ की घटना के एक विडियो को बैंगलोर के किसी "ऍम जी रोड" की छेड़छाड़ की घटना के तौर पर सोशल मीडिया में दिखाया गया . सबूत
के लिए लिंक पेश है जिसमे दो अलग घटनाओ को जोड़कर एक घटना के तौर पर दिखाया गया है  - 
https://www.youtube.com/watch?v=J6U3QW28gNY&list=PLb3mSbzz6zktzoRJbRghpN4UkojtWc5mx

बरहाल दक्षिणपंथियों का अगला चुनावी पैंतरा "निर्भया" केस में उस नाबालिग के नाम और धर्म पर टिका है, ताकि ऐसे मुद्दों की आड़ में आने वाले राज्यों के चुनावों में सोशल मीडिया और मीडिया के माध्यम से साम्प्रदायिकता परोसी जा सके।परन्तु जो घिनोनी हरकत इस "निर्भया" के तथाकथित "नाबालिक" बलात्कारी ने की है जिसके "धर्म" के आधार पर हमारी सामूहिक चेतना फिर से खड़ी होगी ,ऐसी घिनोनी हरकत कुछ दिन पहले जम्मू पुलिस के अधिकारी ने किसी महिला के साथ थाने में भी की है ।। अब धर्म नही पूछोगे ।। अब जाती नही पूछोगे ।।

मणिपुर में एफस्पा का दुरुपयोग करने वाले सैनिकों का धर्म नही पूछोगे , जिन्होंने महिला के जननांग में बंदूक की गोलियाँ ठूस दी थी ,सामूहिक बलात्कार करने के बाद । पूछिये जाती और धर्म । शर्मा क्यों रहे है । आपकी दक्षिणपंथी सामूहिक चेतना का खोखलापन कहीं उफ़न कर बिखर ना जाये ।याद रखियेगा की मणिपुर से लेकर छत्तीसगढ़ तक और छत्तीसगढ़ से लेकर गुजरात तक और गुजरात से लेकर कश्मीर तक ऐसी कई सामूहिक दुष्कर्म और बलात्कार की घटनाएं है जिनके अपराधियों और आरोपियों के जाती और धर्म सुनकर आपकी दक्षिणपंथी सामूहिक चेतना लगभग चरमरा सी जाएगी। 
आशा करता हूँ इस लेख को पढ़ने के बाद आपकी सामूहिक चेतना जो 16 मई सन 2014 के बाद अर्नब गोस्वामी की तरह , रोहित सरदाना की तरह या फिर तिहाड़िया सुधीर की तरह बरताव नही करेगी और वो सामूहिक चेतना अब "दक्षिणपंथी" कुप्रभाव से बाहर ज़रूर आएगी ।
आपका प्यारा - देशद्रोही
चित्रेश गहलोत